प्यार का पहला ख़त...
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है|
जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है|
गाँठ अगर लग जाये तो फिर रिश्ते हो या डोरी
लाख करे कोशिश खुलने में वक्त तो लगता है|
हमने इलाजे जख्में दिल तो ढूंढ लिया लेकिन
गहरे जख्मों को भरने में वक्त तो लगता है|
जिंदगी तुने...
जिंदगी तुने लहू लेके,दिया कुछ भी नहीं
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नही
मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी लेलो
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नही
हमने देखा है कई ऐसे खुदाओं को यहाँ
सामने जिनके वो सचमुच का खुदा कुछ भी नहीं
या खुदा अबके ये किस रंग में आई है बहार
जर्द ही जर्द है पेड़ों पे हरा कुछ भी नहीं
दिल भी इक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए,या कुछ भी नहीं|
Subscribe to:
Posts (Atom)