तुम से सब...


जब भी तुम बिस्तर से उठकर
महावर लगे पैरों से चलकर
मेहँदी लगे हाथों से दरवाजा खोलती हो,
मेरे शहर में
उषा मुस्कुराने लगती है...





जब भी तुम आँचल संवारती हो
और तुम्हारी चूरियाँ
खनक उठती हैं
मेरे शहर के मंदिर में कोई भक्त
मधुर घंटियाँ बजाता  है...

जब भी बादल छाने  लगते हैं
और मेरी याद सताने लगती है
तुम्हारी आँखे भीगने लगती हैं.
तब मेरे शहर कि
नदियों के पुलों पर
पानी छलकने लगता है...