मुझे तो मरना ही था...


मैं यशोदा की वह बेटी
जिसे न नन्द बाबा ने बचाया न वासुदेव ने
दोनों पिता थे और दोनों ने मिलकर मारा मुझे
यह तो अच्छी बात नहीं

सोती रही यशोदा माता
उसे तो यह भी नहीं पता
उसने जना था बेटी या बेटा

बेटे की रक्षा के लिए मारी गई बेटी
बेटा जुग-जुग जिए
बेटा राज करे
कह कह कर मारी गई बेटी

कंस मामा ने तो बाद में मारा
उसके पहले हत्या की मेरी
मेरे पिता ने कंस मामा के हाथों में सोंप के
कंस मामा ने तो पत्थर पर पटका था केवल|

बेटी हूँ जानकर
गिडगिढ़ायी माँ देवकी
मरी मैं
बचा तुम्हारा बेटा
जगत की कही
मैं मरी और मरती रही तब से अब तक,
तब मरी कृषण के लिए
अब मरती हूँ किसी
मोहन,मुन्ना,दीपक के लिए
इन्हीं कुल दीपकों के लिए
बुझती रही मैं बार-बार
ताकि कुल रहे उजियार
जियें जागें गाती रही मैं
तब भी
मरती रही मैं...

क्यूंकि मैं बेटी थी तुम्हारी...
मुझे तो मरना ही था
तुम न मारते पिता तो कोई दुर्योधन मारता मुझे
सभा के बीच साडी खींच
मुझे तो मरना ही था|