आशा...


नयें वर्ष में आशा है,की फूटेगी कोई आशा की किरण |
बिछुड़े हुए दो दिलों को आशा है,कि होगा मिलन||
इस बीते हुए वर्ष में तो हो पाया कोई संगम|
आशा है इस नये वर्ष में मेरे दिल की पुकार सुनेगा मेरा सनम||
पिछले वर्ष हमारी छोटी सी मुलाकात पर,
तुमने किया था,इक छोटा सा,बड़ा हसीन वादा|
मगर उसके बाद शायद तुमने छोड़ ही दिया यहाँ आने का इरादा||

इस नये साल में शायद तुम मुझसे मिलने की हंसी गलती कर दो |
अब जाओ प्यारे सनम,मेरी कोरी सी
जिंदगी में पुन:रंग भर दो||

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा...


एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे जन्नत की हूर,जैसे आँखों का नूर
जैसे नन्हा फरिश्ता,जैसे बेनाम रिश्ता
जैसे कोई गजल ,जैसे खिलता कँवल
जैसे ताज महल हो चांदनी में खड़ा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे कोयल की आवाज़,जैसे सरगम का साज
जैसे ममता का हाथ,जैसे बरसों का साथ
जैसे मुश्किल में दुआ,जैसे दर्द में दवा
जैसे सामने खड़ा हो मेरा खुदा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे आँखों का खुमार,जैसे चमन की बहार
जैसे अर्दु जुबान,जैसे तितली की जान
जैसे शहद सी बात,जैसे मिलन की रात
जैसे परदेस में मिल जाये कोई सगा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे कश्मीरी अनार,जैसे वादियों की बहार
जैसे बारिश का मौसम,जैसे ख़ुशी में आँखे नम
जैसे मखमली लिबास,जैसे मिलन की आस
जैसे बिछड़ कर मिलने का कोई समां
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे फूलों की महक,जैसे चिड़ियों की चहक
जैसे आँखों का जादू,जैसे दिल हो बेकाबू
जैसे होंठों का कमाल,जैसे दीवाने हुस्न बेमिसाल
जैसे मंदिर की मूर्त में हो मेरा खुदा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे शबनमी एहसास,जैसे बरसों की प्यास
जैसे आसमा में धनक,जैसे बिजली की चमक
जैसे फलदार शजर,जैसे प्यार भरी नज़र
जैसे कोई मोहब्बत का देवता
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे वीराने में सदा,जैसे वो सबसे जुदा
जैसे डूबते को सहारा,जैसे वो सबसे प्यारा
जैसे गेसुओं की छाँव,जैसे घुंघरुओं के पाँव
जैसे भुला कोई अपने घर का पता
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

जैसे संगमरमर का बदन,जैसे जवानी की अगन
जैसे भीगे-भीगे बाल,जैसे हुस्न पे पहरा
जैसे महबूब से हो किसी को वफा
एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा

जैसे होंठों की लाली,जैसे फूलों की डाली
जैसे खिलती शाम,जैसे अल्लाह का नाम
जैसे कोई कसम,जैसे सच्चा सनम
जैसे अपने वतन से किसी को वफा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा...








पांच-चार उंगली एक अंगूठा



हमारे हाथों की उँगलियाँ हमें संगठन,समता,जुगत और चोकसी जैसे कई गुण सिखाती हैं



एक अकेली उंगली बेचारी
कितना ही करे प्रयास
उठा पायेगी बोझा जरा भी
हो जाएगी निराश|
लेकिन पांचो उंगली जुड़कर,
थाम लें यह आकाश|
हुआ क्या मतलब इसका?
संगठन मतलब इसका|

हाथ में पांच यह उंगली देखो
सबकी हैं अलग दिशायें
देखो अंगूठे जी इधर गये तो
कन्नी जी उधर को जायें|
लेकिन सही इशारा पाकर ,
पाँचों एक दिशा में आकर
एक मुठी बन जायें|
जुगत है मतलब इसका!

हाथ में रेता हो,ढीली हो मुठी तो
रेता गिरेगा,उंगली के छेदों से,
दायें से बायें से,धीरे-धीरे झरेगा|
लेकिन कसी होगी मुठी बराबर,
तो रेता आये जरा-भी बाहर|
मुठी में ही रहेगा |
चोकसी मतलब इसका|

देखो अंगूठा है
छोटा-सा मोटा-सा
बीच की उंगली बड़ी है,
अगल की उंगली है
जरा-सी छोटी
बगल की थोड़ी-बड़ी है|
नन्ही-सी मुन्नी-सी
को भी मिलाया तो,
पाँचों को आपस में
एक बनाया तो,
मुठी बनके अड़ी है|
है समता मतलब इसका|

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का...


घर पर धोबी
अपने कुत्ते को
गधे के सामने
दुत्कारता है|

घाट पर
कपड़ों के साथ
फटकारता है|

सुनार के कुत्ते के
गले में
सोने की माला है,




कुम्हार ने
अपने कुत्ते के लिए
कुल्हड़ में
दूध डाला है|

लुहार के कुत्ते के पास
सिकी हुई बोटी है,

हलवाई के कुत्ते के पास
मलाईदार रोटी है|

जुलाहे के कुत्ते के पास
खेलने के लिए
ढेर है कपास का,
मोची के कुत्ते के पास
जूता है
आदिदास का|

इन सबके पास
जुगाड़ है
ऐशोआराम और ठाठ का|

एक
निरीह
धोबी का कुत्ता ही है,
घर का
घाट का|

सुख क्या है...


सुख क्या है?बतला सकते हो?
पंडुक की सुकुमार पांख या लाल चौंच मैना की ?
चरवाहे की बंसी का स्वर ?
याकि गूँज उस निर्झर की जिसके दोनों तट
हरे,सुगन्धित देवदारुओं से सेवित हैं?
सुख कोई सुकुमार हाथ हैं?
जिसको हाथ में लेकर हम कंटकित और पुलकित होते हैं?

अथवा है वह आँख
बोलती जो रहस्य से भरी प्रेम की भाषा में?
या सुख है वह चीज़ स्पर्श से जिसके मन में
कंपन-सा-होता,आँखों से
मूक अश्रु ढल कर कपोल पर रूक जाते हैं?
सुख कहाँ पर वास करता है?
सुख?अरे ,यह ज्योतिरिंग तो नहीं है
जो द्रुमो की पत्तियों की छाँव में दिन भर छिपा रहता?
याकि सौरभ पुष्प के उर का?
की कोई चीज़ ऐसी जो
हवा में नाचती है रात को नुपूर पहन कर?
सुख!तुम्हारा नाम केवल मानता हूँ?
मैं ह्रदय का अंध हूँ;
मैंने कभी देखा नही तुमको|
इसकिये प्यारे ! तुम्हे अब तक नहीं
पहचानता हूँ|
पर,कहो ,तुम,सत्य ही,सुन्दर बहुत हो?
पुष्प से,जल से,सुरभि से
और मेरी वेदना से भी मधुर हो?

संयम...


संयम का साथ छोड़ो,संयम से नाता जोड़ो,
बांधे ऐसी कोई डोर,बाहर से भीतर बंध जाये|

लहरें तो आखिर लहरें,पानी भी आखिर पानी,
तूफानों ने कब जानी,पानी की सजल कहानी

सागर का लेकिन संयम,जीवन से कभी नहीं कम,
बांधे तो ऐसी कोई डोर,जीवन से सागर बांध जाये|

मोती-माणिक या कंचन या गीली-सुखी माटी,
सब बोझ बने रह जाते जीवन चदता जब घाटी

साँसों का लेकिन संयम,जीवन से कभी नही कम,
बांधे तो ऐसी कोई डोर,साँसों से गिरधर बंध जाये|

कर्मों का लेखा जोखा करने वाला ईशवर है,
दुनिया,यह सारी दुनिया उसका अपना घर है

शब्दों का लेकिन संयम,वाणी से कभी नहीं कम,
बांधे तो ऐसी कोई डोर,अक्षर से अक्षर बंध जाये|

Wo Ek लम्हा...


Wo Ek LaMha

Jo Meri Ek Bhool Tha, Aur Wo Shakhs, Jo Mujhe Har Roop Mein Qabool Tha, Lekin Hakeekat Ye Na Thi, Na Ab Mujhe Wo Kabool Tha, Kyonke Usne Jana Mujhko Dhool Tha, Wo Shakhs, Jo Meri Ek Bhool Tha...

मैं और मेरी तन्हाई...


आवारा है गलियों में मैं और मेरी तन्हाई
जाये तो कहाँ जाएँ हर मोड़ पे है रुसवाई
मैं और मेरी तन्हाई

यह फूल से पहरे हैं हँसते हुए गुलदस्ते
कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रास्ते
मैं और मेरी तन्हाई

अरमान सुलगते हैं सीने में चिता जैसे
कातिल नजर आती है दुनिया की हाय!जैसे
रोती है मेरे दिल पर बजती हुई शहनाई
मैं और मेरी तन्हाई

हर रंग में यह दुनिया सौ रंग बदलती है
रो कर कभी हंसती है हंस कर कभी गाती है
यह प्यार की बाहें हैं या मौत की अंगड़ाई
मैं और मेरी तन्हाई

आकाश के माथे पर तारों का चारगवां है
पहलू में मेरे मगर मेरे जख्मों का गुल्स्तान है
आँखों से लहू टपकता है दामन में बहार आई
मैं और मेरी तन्हाई||

Aaj Ashkon Ka Taar Toot Gaya,


Aaj Ashkon Ka Taar Toot Gaya,
Rishta-E-Intezaar Toot Gaya,

Yun To Thukra Ke Chal Diye Gye ,
Ek Khilona Tha Pyaar Toot Gaya,

Roye Reh Reh Kar Hichkiyaan Lekar,
Saaz-E-GaM Baar Baar Toot Gaya,

Aap Ki Berukhi Ka Shikwa Kya,
Dil Tha Na-Paidaar Toot Gaya,

Dekh Li Dil Ne Besabati-E-Gul,
Phir TilisM-E-Bahar Toot Gaya,

Kya Chaar Dinki Ranjish Se,
Itni Muddat Ka Pyaar Toot Gaya...

सच्चाई...


दिया कुछ इस तरह से जल गया
की पूरे घर में कालिख मल गया|
ढलेगी बाढ़,तो आयेंगे नेता
यह मत समझो की खतरा टल गया|
हंसी दुनिया के खींचे थे जो नक़्शे
हुई मुद्दत वह कागज गल गया|

दशहरा देखकर खुश हैं यह बच्चे
समझते हैं की रावण जल गया|

ना हारूँगा...

पूछो की मेरी मंजिल कहाँ है
अभी तो सफ़र का इरादा किया है,
हारूँगा हौंसला उम्र -भर
मैंने किसी से नहीं,
खुद से वादा किया है|

नये साल का आरम्भ शुभ हो...


जनवरी की पियरती धूप को
आँगन की तुलसी और
बाहर खड़े बरगद के वृक्ष को
पूरब के सूरज को
पश्चिम के चंदा को

बगल की तलैया को
रात को जुन्हैया को
नाले-नदी सागर को
पनघट के गागर को
कपिल और पूजा को
गाँव और देश को
साल और पलाश को
हरी सूखी घास को
वर्ष,दिन और मास को
छोटी-सी--चिड़िया को
बड़े -बड़े बाजों को
झूठे-सच्चे वादों को
कुछ नये इरादों को
अग्नि को,नीर को
तुलसी को,कबीर को
बिछिया को ,वेणी को
मालकिन को,मेहरी को
सांझ को,दोपहरी को
असाधू को,संत को
आदि को,अंत को
फूल को,बबूल को
सबको..!!हाँ सबको
नया साल शुभ हो!
नया साल शुभ हो!!