स्रिष्टी से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ, किसने ढ़का था
उस पल तो अगम अटल जल भी कहाँ था
स्रिष्टी का कौन है कर्त्ता
कर्त्ता हैं वा अकर्त्ता
ऊँचे आकाश में रहता
सदा अदर्ष्ट बना रहता
वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
नहीं पता, नहीं है पता
Part - II
वह था हिरण्यगर्भ, स्रिष्टी से पहले विद्यमान
वही तो सारे भूत-जात का स्वामी महान्
जो है अस्त्तिवमान धरती आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम अविदेहकर
जिस के बल पर तेजोमेय है अंबर
प्रथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम अविदेहकर
गर्भ में अपने अग्नि धारण कर, पैदा कर
व्यापा था जल, इधर उधर निचे उपर
जगा चुके वो कायेक-मेव प्राण बनकर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम अविदेहकर
ॐ, स्रिष्टी निर्माता, स्वर्ग रचेता, पुर्वज रक्षा कर
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर
फैली हैं दिशाएं बाहों जैसी उसकी सब में सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम अविदेहकर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम अविदेहकर
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