रेत की सहेली...जिंदगी

हाथों से फिसलती रेत से
पूछा मैंने इक बार-
'कौन है तेरी सहेली?'

मुस्कुराकर रेत ने कहा,
'वही जो  संग तुम्हारे गाती है
उलझा कर तुम्हे गीतों में
धीरे-से फिसल जाती है |'

'मुझमें उसमे फर्क है इतना,
मैं हकीकत,वो एक सपना |
मेरी फिसलन दिखती है,
महसूस भी हो जाती है |'

'...पर वो निगोडी देकर एहसास,
सफर के साथ
फिसलकर हाथों से
न जाने कहाँ खो जाती है,
मत पूछ उसका नाम
जिंदगी कहलाती है !!'

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