अरे रुक जा रे बन्दे

अरे रुक जा रे बन्दे,

वो मर चुका है ,
वो जल चुका है |
अब आग लगाते हो कहाँ,
था आशीयाँ जिसका वो गुज़र चुका है |

बंद कर ये लहू बहाना,
नफरत की फसल उगाना,
काट ये आग उगलते नाखून,
जाने कितनी जिंदगी खुरच चुका है |

छाती तेरी कब ठंडक पायेगी,
मुर्दो की बस्ती तुझे कब तक भायेगी,
ये सफेदी का काला रंग कहां तक उडायेगा,
तेर घर भी रंग ये निगल चुका है |

अरे रुक जा रे बन्दे, रुक जा,
वापसी का दरवाजा हमेशा खुला है |

1 comment:

ऋषिकेश खोडके रुह said...

कृपया मेरी इस कविता के साथ मेरा नाम टैग कीजिए। धन्यवाद

ऋषिकेश खोड़के रूह