गुलज़ार की नज़्म

एक परवाज़ दिखाई दी है
तेरी आवाज़ सुनाई दी है

जिस की आंखों में कटी थी सदियां
उस ने सदियों की जुदाई दी है

सिर्फ़ एक सफ़ह पलटकर उसने
बीती बातों की सफ़ाई दी है

फिर वहीं लौट के जाना होगा
यार ने कैसी रिहाई दी है

आग ने क्या-क्या जलाया है शै पर
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है

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