सुबह की धूप, उजली उजली सी, तेरे अंगों को छूकर आई है,
सुर्ख फूलों की नर्म साँसों में, सिर्फ़ खुशबू तेरी समाई है,
जब लचकतीं है ये लटें तेरी,
मैंने बदल को झुकते देखा है,
शोख मौसम के हर नज़ारे में,
तेरी मौजूदगी ही छाई है,
पर्बतों से फिसलते झरनों में, तेरी चूड़ी की छनछनाहट है,
उड़ते पत्तों की धीमी हलचल में, तेरे पावों की मीठी आहट है,
आ के चुपके से तू अभी मेरी, सूनी बाहों में झूल जायेगी,
"मुझको आने में थोडी तेर हुई" कह के हौले से मुस्कायेगी,
जब चूमुंगा तेरी पलकों को, तेरी आखों में एक नशा होगा,
तेरी साँसों में थरथरी होगी, वक्त बिल्कुल रुका-रुका होगा,
तेर तक खोये खोये से हम तुम, अजनबी रास्तों से गुजरेंगे,
रस्मे दुनिया को भूल कर दोनों, आशिकी के पलों से गुजरेंगे,
भूल जाऊँगा उस घड़ी में मैं भी, अपनी किस्मत में बस जुदाई है,
तू अभी मेरे पास है तो क्या, सच तो ये है की तू पराई है...
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