ईश्वर हर जगह हो नहीं सकता था,इसलिए माँ भिजवाई,
न मैं गुनी हूँ न मैं ज्ञानी,और न इतना जग जाना |
पर इस नन्हे फूल ने खिलकर गोद में मेरी,भेद मुझे ये समझाया,
की लाख जतन चाहे कर ले वो इश्वर हो ही नही सकता माँ जैसा |
एक ठिठुरती सर्द रात में.क्या देखा है किसी ने,
उस ईश्वर को गीले बिस्तर पर सोते |
ये केवल माँ हो सकती है...
वो तो पूरी कायनात का जादू लेकर बैठा है,
कोई करिश्मा कर भी दे,तो बात बड़ी इसमें क्या है |
पर मैंने महसूस किया है,माँ के छु लेने भर ही से,
कैसा जादू होता है,गहरे से गहरा दुःख हो चाहे छू मंत्र हो जाता है |
हम बन्दों को पता है क्या की ईश्वर दुःख भी देता है?
कर्मों का करके हिसाब वो फिर पीछे ही कुछ देता है |
कहाँ वो इतने दरियादिल की,झूठ-मूठ के आंसू से पिघलकर,
जान-बूझकर सारा छल,फिर भी ठगाए बच्चों से |
यह केवल माँ हो सकती है बस केवल माँ हो सकती है ...
कहकर माँ को रब जैसा ,क्यूँ उसके भोलेपन पर प्रश्न करूं?
क्या देखा है कहीं किसी ने उसमे माँ-सा भोलापन?
ये तो बस माँ हो सकती है,बस केवल माँ हो सकती है...
माँ की व्याख्या केवल माँ है,माँ का वर्णन केवल माँ |
केवल माँ ही माँ जैसी है|रब नहीं है उस जैसा |