वो अहसास मात्रत्व का...

गर्व होता है खुद पर,
दुनिया के लिए किस्से सही,
हमें होता है फख्र खुद पर,यह समझ सकती है 'सिर्फ एक माँ'

गुजरना वो नों महीनों का,
न जाने कितनी उलझनों को सहना,
वो पीड़ा , वो आनंद ,
यह समझ सकती है'सिर्फ एक माँ'

वो लम्हा थम जाता है जनम का,
हजारों खुशियाँ आ जाती हैं कदमों में,
कोई दर्द कोई आंसू याद नहीं रहता,
जब मिलता है'स्पर्श'शिशु का,
यह समझ सकती है 'सिर्फ एक माँ'

1 comment:

Saumya7392 said...

A very nice poem! :)