गुजरा जमाना...

सावंली सुंदर सलोनी सी लड़की
नीम दरखत के पीछे कि खिडकी

आम कि साखें और बरगद कि डाली
नीम के पत्ते और मिटटी कि प्याली

देख के मुझ को उस का मुस्कुराना
दांतों से अपने होंठ दबाना

दुपट्टे के छोर में ऊँगली फिरानी
चुपके से मेरे ख्यालों में आना

भरी दुपहरी में छत पे बो आना
भिगो कर बालों को फिर से सुखाना

बाल बनाने को खिडकी पे आना
करूं जो इशारे तो मुंह का बनाना

चांदनी रात में बागों में जाना
 छीपछीप के उस का मिलने को आना

पूनम कि रात में तारों का गिनना
बंद कर के आँखे उस कि बातों को सुनना

बहुत याद आता है गुज़रा जमाना
उस कि गली के चक्कर लगाना|

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