ये लो शीशा...
जब भी मैं रोया करता
माँ कहती
ये लो शीशा
देखो इसमें
कैसी लगती है
अपनी रोनी सूरत
अनदेखे ही शीशा
मैं सोच-सोचकर
अपनी रोनी सूरत
हँसने लगता ||
एक बार रोई थी माँ भी
नानी के मरने पर
फिर मरते दम तक
माँ को मैंने
खुलकर हँसते
कभी न देखा |
माँ के जीवन में शायद
शीशा देने वाला
अब कोई नहीं था||
सबके जीवन में ऐसे ही
खो जाता होगा
कोई शीशा देने वाला||
याद मुझे तू आती है माँ
बारिश की रिमझिम बूंदों में,
ख्वाब में और मेरी नींदों में,
हर पल तू मुस्काती है माँ,
याद मुझे तू आती है माँ।
जब-जब धूप का पहरा छाया,
तूने अपना आँचल फैलाया,
भीड़ हो या हो तन्हायी,
साथ है तेरा एहसास दिलाया।
अपने ममता के आँचल में,
हर मुझे सुलाती है माँ,
याद मुझे तू आती है माँ।
मेरे नन्हे कदमों की आहट,
तेरे ममतामयी दिल की राहत,
सब दिन बीते कई मौसम आये,
कम न हुई कभी तेरी चाहत,
तन्हायी में तेरी ये बातें,
आकर मुझे रुलाती है माँ,
याद मुझे तू आती है माँ।
आज भी मेरे खेल खिलौने,
माँ तेरी झलक दिखाते हैं,
तेरे साथ में गुजरे पल मेरी माँ,
अब भूले नहीं भुलाते हैं,
अपनी बांहों के घेरे में,
जैसे मुझे झुलाती है माँ,
याद मुझे तू आती है माँ।
छोङ गई अपने पीछे तू
, अपनी अनमिट सी परछाईं,
समझ नहीं पाएगी दुनिया,
इस रिष्ते की निष्छल गहराई
मेरे मन की छोटी सी बगिया,
खुशियों से महकाती है माँ,
याद मुझे तू आती है माँ।
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