सपनो की डोली ...


सूना मन था ,पर खुश कितना खुद में.

अचानक आया लेकर कोई सपनों की बारात,

लगे सजाने डोली हम रातोंरात.

रिश्तों की डोर होने लगी थी मजबूत,

होने लगा दिल को खुशियों का अहसास,

लगाए बॅठ गए हम भी उनकी आस.

पलक झपकते आई ये कॅसी कयामत,

लॉट गयी बिन दुल्हन सपनों की बारात.

आंखे खुलते बन गया सब अफसाना,

टुट गया था वो शीशे का आशियाना.

झुठी थीं वो हर बातें,

झुठे थे वो सारे रिश्ते,

चले थे जिन्हें हम प्यार से सिंचने.

हकीकत हो मेरा सपनों से सुंदर,

भुले से भी न देखुं सपनों में वो मंजर.

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