कहने को बहुत कुछ है, अपनी कहानी में,
लफ्ज़ों में बयां कर दे, ऐसी नज़्म नहीं होती !
आँखो को इंतज़ार की आदत सी हो गई है,
दहलीज़ पर कोई दस्तक, बज़्म नहीं होती !
जमाना कहता है, हर रात की सुबह होती है,
ये बेकस रात, मगर अब, खत्म नहीं होती !
महबूब की मेंहदी फीकी पड़ सकती है,
बचपन की शरारत, कम नहीं होती !
पत्थर हो चुकी संवेदना हमारी,
ये आँखें अब नम नहीं होती ! !
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment