आज की इस भागमभाग में
दुनिया के समंदर में
वेदनाओं के भँवर में
संवेदनाओं के लिये वक्त कहाँ?
आज संवेदना उठती है मन में
बसती है दिल में
और दिमाग में सिमट जाती है
जिस तेजी से हम बढ़ रहे हैं
खुद ही खुद को छल रहे हैं
एक दिन ऐसा भी आयेगा जब
हमसे पूछा जायेगा
कि बताओ संवेदना कौन है?
किसी की बहन है, बीवी है
नानी है सहेली है
ये कैसी पहेली है?
आखिर कौन है संवेदना?
रिश्ता क्या है इससे मेरा?
तब हम न बता पायेंगे
कि संवेदना दिल की आवाज़ है
इंसान की इंसानियत है
जानवर और हमारे बीच का फर्क है
माँ की ममता और बाप के दिल का प्यार है
छूने से छू लेने का अहसास है संवेदना है
और कलम हाथ में ले कर
यह साधिकार कथन है कि
संवेदना पहचान है साहित्य की भी
इस लिये संवेदित हूँ
कि खो न जाये कहीं।
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