चोट लगे जब और किसी को दर्द हमें भी होता है

चोट लगे जब और किसी को दर्द हमें भी होता है
होते देख अत्याचार दिल बेबस हो रोता है
किसी के रोने पर जब आँखें अपनी नम हो जाती है
किसी के गम से जब भावना हमारी सम हो जाती है
तभी संवेदना उपजती है यही संवेदना होती है।

किसी पर होता ज़ुल्म देख, जब मुट्ठी अपनी बँध जाती है
बहता देख खून किसी का, आँखें मुंद सी जाती हैं
इंसाफ ना मिल पाने पर जब, दांत हमारे पिसते हैं
दूजे पर लगे घाव और अंग हमारे रिसते हैं
कुछ न कर पाने की लाचारी से जब आत्मा पसीजती है
तभी संवेदना उपजती है यही संवेदना होती है।

जब रिक्शा चालक को बोझ खींचना हमें अखरता है
जब कंधे से खिंचता बोझ देख अंदर कुछ बिखरता है
जब भूखा देख किसी को आँतें अपनी कुमल्हाती हैं
किसी के सुखे होंठ देख कलियाँ मन की मुरझाती हैं
जब कुछ कर गुज़र जाने की भावना पनपती है
तभी संवेदना उपजती है यही संवेदना होती है

जब बिटिया घर की नहीं मोहल्ले की हो जाती है
जब अम्मा सभी की दादी-नानी कहलाती है
जब बिटिया की विदाई का आलम सबको रूलाता है
जब अम्मा के जाने पर कोई कुछ नहीं पकाता है
जब किसी को कुछ हो जाने पर सबकी आँखे जगती हैं
तभी संवेदना उपजती है यही संवेदना होती है।

जब दो दर्दों का पावन संगम प्रयाग कहलाता है
जब प्यार, प्रेम के तोड़ निवाले, सब को भर पेट खिलाता है
जब होली, ईद, दीवाली धर्म नहीं, इंसान मनाया करते हैं
जब पड़ौसी गुझिया पपड़ी और हम सेंवई खाने जाया करते हैं
भावनाओं की नदी प्रीत लहरों से उफनती है
तभी संवेदना उपजती है यही संवेदना होती है।

1 comment:

रवि रतलामी said...

बढ़िया लिखा है :)