उसने दिन रात मुझको सताया इतना
कि नफरत भी हो गई और मोहब्बत भी हो गई.
उसने इस नजाकत से मेरे होठों को चूमा,
कि रोज़ा भी न टुटा और अफ्तारी भी हो गई.
उसने इस अहतराम से, मुझसे मोहब्बत की,
कि गुनाह भी न हुआ और इबाबत भी हो गई.
मत पूछ उसके प्यार करने का अंदाज़ कैसा था...
उसने इस शिद्दत से मुझे, सीने से लगाया,
कि मौत भी न हुई और जन्नत भी मिल गई.
3 comments:
खूबसूरत सोच ..
सुन्दर शब्द रचना ।
bahut khoob!!!
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