भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जल्‍वों से वाक़िफ़ हो गयी

उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्‍त की तालीम देना बाद में

पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है

तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग

इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो.

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में..

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्‍सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई

खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्‍बी क़तारों में

अदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ

मुलम्‍मे के सिवा क्‍या है फ़लक़ के चाँद-तारों में

र‍हे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से

बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद

जो है संगीन के साये की चर्चा इश्‍तहारों में.

-ooOOoo- Life's Riches -ooOOoo-

When we count
our many blessings;
It isn't hard to see
that life's most valued
treasures are the
treasures that are free.

For it isn't what

we own or buy
that signifies
our wealth.

It's the special

gifts that have
no price:
our family,
friends and health.

-ooOOoo-

कुछ और बात होती...


दोस्तों! तुम प्रदर्शन करने आये,
सोचो क्या तुमने हासिल किया|
अगर तुम दर्शन करने आये होते,
तो शायद कुछ और बात होती||
भाव-भंगिमा से लगता है द्वेषपूर्ण रोष,
व्यापत था तुम्हारे शरीर में,
थोडा सा प्रेम लेकर आये होते,
तो शायद कुछ और बात होती||
समाज के प्रति फर्ज नही देता,
किसी को अभद्रता का अधिकार|
साधू-संतों से शालीनता बरतते,
तो शायद कुछ और बात होती||
विघटनकारी शक्तियों के इशारों पर,
कठपुतलियों की तरह नाचते हो|
अपने विवेक को प्रखर कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती||
कसूर तुम्हारा भी नहीं है शायद,
तुम्हारा धंधा है सनसनी फैलाना|
तथ्यों को जानने की जहमत करते,
तो शायद कुछ और बात होती||
नारायण को साधारण नर जाना,
मुजरिम समझकर किया अपमाना |
लोक-कल्याण में सहयोग कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती
ब्रह्मज्ञानी की अवमानना के बदले.
जाने प्रकृति कैसा कोप ढाये|
पड़ जाते सत्संग के चार छींटे,
तो शायद कुछ और बात होती||
कोमलचित संत तुम्हारी उदंडता को भी
अपने चित पर नहीं धरते|
तुम उनसे स्वयं श्रमा -प्रार्थना कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती||
जानता हूँ तुम अपने वाक् -चातुर्य से,
हर बात काटने को ही आतुर|
बातें तुम्हारे हित की हैं यह बात जान पाते,
तो कुछ और बात होती ||

कितने दिन???

मानव सोचो जग के सुख का,
विस्तार रहेगा कितने दिन |
सत्कार रहेगा कितने दिन,
यह प्यार रहेगा कितने दिन |
चाहे पितु हो या माता हो,
पत्नी हो सुत या भ्राता हो|
जिसको अपना कहते उस पर,
अधिकार रहेगा कितने दिन|
कोई आता कोई जाता,
सबसे थोड़े दिन का नाता|
जिसका भी आश्रय लेते वह ,
अधिकार रहेगा कितने दिन|
जो जग में सच्चे ज्ञानी हैं,
परमार्थ तत्व के ध्यानी हैं|
उनसे पूछो मन का माना,
यह संसार रहेगा कितने दिन|
तुम प्रेम करो अविनाशी से,
मिल जाओ सब उर वासी से|
ऐ पथिक! यहाँ मैं-मेरा का,
व्यापार रहेगा कितने दिन||

तो तुम्हें मानूँगा ...


दर्द दिल मेरा मिटा दो तो तुम्हें मानूँगा |
मरने
वाले को जिन्दा कर दो तो मैं तुम्हे मानूँगा ||
फोड़ डाला है जमाने नें मुकदर मेरा |
बिगड़ी तक़दीर बना दो तो तुम्हे मानूँगा ||
प्यासी आँखों को मेरी,शर्बते दीदार मिले |
इस तरह प्यास भुझा दो तो तुम्हें मानूँगा ||
रूस,इंग्लॅण्ड और जापान जगा सकते हो |
सोये भारत को जगा दो तो तुम्हें मानूँगा ||
मैं हूँ परवाना उसके दिल में गर |
प्यार की शम्मा जला दो तो तुम्हें मानूँगा ||

ईशवर की भूलें...



गलती तो सबसे होती है,
इश्वर ने क्या भूल नहीं की?
हाथी की जो असल पूँछ थी,

वह उसके मुँह पर लटका दी
नाम रख दिया 'सूंड'

अपनी भूल छिपाने को फिर-
एक
गधे की पूँछ तोड़कर
हाथी के पीछे चिपका दी|

और हमारे कान?दो इंच के-

किन्तु वह चूहे सा
तीन इंच की 'बॉडी' उसकी,
छह इंच के कान ?
वाह भगवान् !
यही है न्याय ?
हाय !!
और बताऊं एक
तीसरी भूल ?
भयंकर भूल !
मुख मंडल पर-

दो आँखें पास-पास ही फिट कर दी है?

एक नेत्र आगे लग जाता
और एक पीछे लग जाता

तो क्या कुछ घाटा पड जाता ?

आगे को तुम देख रहे हो-
पीछे कोई चपत मारकर

भाग जाए तो क्या कर लोगे?

और देखिये एक गजब बात-

मूछ और दाढ़ी
दोनों ही पुरुष वर्ग को दे डाली है|
अरे!मूंछ अगर मर्दों को दे दी,
तो दाढ़ी देवीजी को देते|
पर हमको क्या मतलब
इस से
होने दो अन्याय !
दो बजकर पच्चीस हो गयी,
चलो पियेंगे चाय
|
कपिल देव सग्गी

क्या फिर उदित होगा सूरज?


आज भी आकाश घना हो रहा है
कहीं सलीब पर
आज भी हमें प्यार करने वाला
छटपटा रहा होगा|
आज भी किसी रहिस के भोज में
कोई गरीब के मेमने को छीनकर
मार रहा होगा,आज भी कहीं
सपनो के खून से कोई
आँगन को लीप रहा होगा
आज भी आकाश घना हो रहा है
कहीं एक बेचारी बहन का मांस
कुत्ते चबा रहे होंगे
आज भी पडोसी द्वारा खुद की जमीन में|
तैयार किये गये अंगूर के बाग़ को
कोई तबाह कर रहा होगा
आज भी हज़ारों
नन्हें गालों पर खिलनेवाले
केसर के फूलों को कोई
हड़प रहा होगा
आज भी थोड़े मृत सपनो के लिए
किसी के सीने में चिता जल रही होगी
आज भी ख़ुशी से
उड़ रहे नन्हे कपोत को
बाण से गिराया गया होगा
आज भी अधनंगे
बूढ़े पिता को नमस्कार कर
कोई गोली चला रहा होगा
आज भी आकाश घना होने पर
मेरा मन अंधकार से भर जाताहै
क्या आज सूरज अस्त होने के बाद
फिर उदित नही होगा?

Ankhon Me Raate Hongi







बच्चों से बातें करना


बच्चों से बातें करना

वेद पुराण उपनिषद का पढ़ना.

दिल की कहना दिल की सुनना

उन्मुक्त निडर नदिया सा बहना.

दुनिया को पैरों में रखना

पैरों को सर पर रख लेना,

सर को फिर ज़मीन पर रख कर

एक कलाबाज़ी खा जाना.

गोल गोल दुनिया के चक्कर

उनसे सदा सहज ही बचकर

अपनी दुनिया अलग बसाना

बच्चों ने बचपन से जाना.

ज़रा ग़ौर से देखें हम जो

बच्चों की नन्हीं दुनिया को

सहज भाव से भरी हुई है.

प्रेम सहज है, क्रोध सहज है

जीवन का हर छन्द सहज है

प्रीत का एक धागा ऐसा है

रोते रोते वो हँस पड़ता.


बच्चों के भावों में खोजें

एक अलौकिक ज्ञान मिलेगा

कर्ता-कर्म का द्वंद्व न होगा

पल पल का विस्तार मिलेगा.

हम सब भी तो बच्चे ही थे

इसी भाव में रचे बसे थे

फिर हमको क्या हो जाता है

वो बच्चा क्यों खो जाता है.

तत्व प्रश्न जीवन का यह है

इसका उत्तर कठिन है मिलना

बच्चों से बातें करना

वेद पुराण उपनिषद का पढ़ना.

इस बार उजाला भीतर हो....



मन-द्वार सजा हो तोरण से
मन-आँगन सजे रंगोली से,
मन-मंदिर में पावन ज्योति,
इस बार उजाला भीतर हो |

अंतस के गहन अँधेरे में,
धुंधली पड़ती पगडण्डी पर,
बस एक नेह का दीप जले,
इस बार उजाला भीतर हो |

रिश्तों की उलझी परतों में,
उजली किरणों का डेरा हो,
हर मुख दमके निश्छल उजज्वल,
इस बार उजाला भीतर हो||

पिछली,बिखरी,उझरी,कडवी
बिसरे स्मृतियाँ जीवन की,
अब नए स्वरों का गूंजन हो,
इस बार उजाला भीतर हो |

जीवन यात्रा के शीर्ष शिखर
आशीष भरे जिनके आँचल,
छाया दे हर नवअंकु को,
इस बार उजाला भीतर हो |

प्रतिपल जीवन में उत्सव हो,
हर दीप तेल और बात़ी का,
स्नेह्प्गा गठबंधन हो,
इस बार उजाला भीतर हो |

साकार बने अब हर सपना
अपनेपन का आकर बड़े,
अब सब अपने ही अपने हो,
इस बार उजाला भीतर हो |