दोस्तों! तुम प्रदर्शन करने आये,
सोचो क्या तुमने हासिल किया|
अगर तुम दर्शन करने आये होते,
तो शायद कुछ और बात होती||
भाव-भंगिमा से लगता है द्वेषपूर्ण रोष,
व्यापत था तुम्हारे शरीर में,
थोडा सा प्रेम लेकर आये होते,
तो शायद कुछ और बात होती||
समाज के प्रति फर्ज नही देता,
किसी को अभद्रता का अधिकार|
साधू-संतों से शालीनता बरतते,
तो शायद कुछ और बात होती||
विघटनकारी शक्तियों के इशारों पर,
कठपुतलियों की तरह नाचते हो|
अपने विवेक को प्रखर कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती||
कसूर तुम्हारा भी नहीं है शायद,
तुम्हारा धंधा है सनसनी फैलाना|
तथ्यों को जानने की जहमत करते,
तो शायद कुछ और बात होती||
नारायण को साधारण नर जाना,
मुजरिम समझकर किया अपमाना |
लोक-कल्याण में सहयोग कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती
ब्रह्मज्ञानी की अवमानना के बदले.
जाने प्रकृति कैसा कोप ढाये|
पड़ जाते सत्संग के चार छींटे,
तो शायद कुछ और बात होती||
कोमलचित संत तुम्हारी उदंडता को भी
अपने चित पर नहीं धरते|
तुम उनसे स्वयं श्रमा -प्रार्थना कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती||
जानता हूँ तुम अपने वाक् -चातुर्य से,
हर बात काटने को ही आतुर|
बातें तुम्हारे हित की हैं यह बात जान पाते,
तो कुछ और बात होती ||