मन-आँगन सजे रंगोली से,
मन-मंदिर में पावन ज्योति,
इस बार उजाला भीतर हो |
अंतस के गहन अँधेरे में,
धुंधली पड़ती पगडण्डी पर,
बस एक नेह का दीप जले,
इस बार उजाला भीतर हो |
रिश्तों की उलझी परतों में,
उजली किरणों का डेरा हो,
हर मुख दमके निश्छल उजज्वल,
इस बार उजाला भीतर हो||
पिछली,बिखरी,उझरी,कडवी
बिसरे स्मृतियाँ जीवन की,
अब नए स्वरों का गूंजन हो,
इस बार उजाला भीतर हो |
जीवन यात्रा के शीर्ष शिखर
आशीष भरे जिनके आँचल,
छाया दे हर नवअंकु को,
इस बार उजाला भीतर हो |
प्रतिपल जीवन में उत्सव हो,
हर दीप तेल और बात़ी का,
स्नेह्प्गा गठबंधन हो,
इस बार उजाला भीतर हो |
साकार बने अब हर सपना
अपनेपन का आकर बड़े,
अब सब अपने ही अपने हो,
इस बार उजाला भीतर हो |
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