नहीं की मीलने मीलाने का सिलसिला रखना

नहीं की मीलने मीलाने का सिलसिला रखना
किसी भी सतह पे कोई तो राब्ता रखना
[सतह=level; राब्ता=relationship]

मदद की तुम से तवक़्क़ो तो ख़ैर क्या होगी
ग़रीब-ए-शहर-ए-सितम हूँ मेरा पता रखना
[मदद=help; तवक़्क़ो=expectation]

मरेंगे और हमारे सिवा भी तुम पे बहुत
ये जुर्म है तो फिर इस जुर्म की सज़ा रखना

नये सफ़र पे रवाना हुआ है अज़-सर-ए-नौ
जब आऊँगा तो मेरा नाम भी नया रखना
[अज़-सर-ए-नौ=A fresh start]

हिसार-ए-शौक़ उठाना 'दीवाने' ज़रूर मगर
किसी तरफ़ से निकलने का रास्ता रखना

देखना है वो मुझ पर मेहरबान कितना है

देखना है वो मुझ पर मेहरबान कितना है
असलियत कहाँ तक है और गुमान कितना है

[असलियत = reality; गुमान = Doubt]


क्या पनाह देती है और ये ज़मीं मुझ को
और अभी मेरे सर पर आसमान कितना है
[पनाह = shelter]

कुछ ख़बर नहीं आती किस रविश पे है तूफ़ाँ
और कटा फटा बाक़ी बादबान कितना है
[बादबान = sail of a boat]

तोड़ फोड़ करती हैं रोज़ ख़्वाहिशें दिल में
तंग इन मकानों से ये मकान कितना है

क्या उठाये फिरता है बार-ए-आशिक़ी सर पर
और देखने में वो धान-पान कितना है
[बार = weight]

हर्फ़-ए-आरज़ू सुन कर जांचने लगा यानी
इस में बात कितनी है और ब्यान कितना है

फिर उदास कर देगी सर्सरी झलक उस की
भूल कर ये दिल उस को शादमान कितना है
[शादमान = happy]

ये शब-ए-फ़िरक़ ये बेबसी हैं क़दम क़दम पे उदासियाँ

ये शब-ए-फ़िरक़ ये बेबसी हैं क़दम क़दम पे उदासियाँ
मेरा साथ कोई न दे सका मेरी हसरतें हैं धुआँ धुआँ

मैं तड़प तड़प के जिया तो क्या मेरे ख़्वाब मुझ से बिछड़ गये
मैं उदास घर की सदा सही मुझे दे न कोई तसल्लियाँ

चली ऐसी दर्द की आँधियाँ मेरे दिल की बस्ती उजड़ गई
ये जो राख-सी है बुझी बुझी हैं इसी में मेरी निशानियाँ

ये फ़िज़ा जो गर्द-ओ-ग़ुबार है मेरी बेकसी का मज़ार है
मैं वो फूल हूँ जो न खिल सका मेरी ज़िन्दगी में वफ़ा कहाँ

तेरी गुफ़्तगू में है जो चाशनी जो तेरे लबों में हलावतें

तेरी गुफ़्तगू में है जो चाशनी जो तेरे लबों में हलावतें
न सुरूर वो फ़स्ल-ए-बहार में न गुलों में लताफ़तें

कहाँ रह गईं तेरी निगहतें वो सबा किधर को निकल गई
तेरी आहटों को तरस गाईं मेरे जिस्म-ओ-जाँ की सम'अतें

तेरे अंग अंग अमिं लोच है मेरे दिल के सोज़-ओ-ग़दाज़ का
मेरे ख़ून-ए-दिल से रक़म हुईं तेरे रन्ग-ओ-बू की हिकायतें

मेरी चश्म-ए-ग़म दिल-ए-मुज़तरिब ग़म-ए-आरज़ू ग़म-ए-जुस्तजू
लिये फिर रहा हूँ नगर नगर किसी मेहेरबाँ की अमानतें

कभी किताबों में फूल रखना

कभी किताबों में फूल रखना
कभी दरख़्तों पे नाम लिखना
हमें भी है याद आज तक वो
नज़र से हर्फ़-ए-सलाम लिखना

[daraKht=tree; harf=letter (as in alphabet)]

वो चाँद चेहरे वो बहकी बातें
सुलगते दिन थे महकती रातें
वो छोटे-छोटे से काग़ज़ों पर
मुहब्बतों के पयाम लिखना

[payaam=message]


गुलाब चेहरों से दिल लगाना
वो चुपके चुपके नज़र मिलाना
वो आरज़ूओं के ख़्वाब बुनना
वो क़िस्सा-ए-नातमाम लिखना

[qissaa=tale/story; naatamaam=unfinished]

मेरे नगर की हसीं फ़ज़ाओ
कहीं जो उन के निशान पाओ
तो पूछना ये कहाँ बसे हो
कहाँ हैं उन का क़याम लिखना

गई रुतों में "दीवाने" हमारा
बस एक ही तो ये मशग़ला था
किसी के चेहरे को सुबह कहना
किसी की ज़ुल्फ़ों को शाम लिखना


[mashaGalaa=preoccupation]

मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा

इस से पहले कि तेरी चश्म-ए-करम माज़रत की निगाह बन जाये
प्यार ढल जाये मेरे अश्कों में आरज़ू एक आह बन जाये
मुझ पे आ जाये इश्क़ का इल्ज़ाम और तू बेगुनाह बन जाये
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा

इस से पहले कि सादगी तेरी लब-ए-ख़ामोश को गिला कह दे
तेरी मजबूरियाँ न देख सके और दिल तुझको बेवफ़ा कह दे
जाने मैं बेख़ुदी में क्या पूछूँ, जाने तू बेरुख़ी से क्या कह दे
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा

इस से पहले कि तेरे होठों से ग़ैर होठों के जाम टकराये
इस से पहले के ज़ुल्फ़ के बादल अजनबी बाज़ुयों पे लहराये
और तेरी बेबसी के नज़ारे मेरी आँखों पे आग बरसाये
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा

छोड़ कर साहिल-ए-हयात चला अब सफ़ीना मेरा कहीं ठहरे
ज़हर पीना मेरा मुक़द्दर है और तेरे होंठ दिल-नशीं ठहरे
किस तरह तेरे आस्ताँ पे रुकूँ जब न पाँव तले ज़मीं ठहरे
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा

मुझ को इतना ज़रूर कहना है वक़्त-ए-रुख़्सत सलाम से पहले
तोड़ लूँ रिश्ता-ए-नज़र मैं भी तू उतर आये बाम से पहले
ये मेरी जान मेरा वादा है कल किसी वक़्त शाम से पहले
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा

शायर: सफ़ुद्दिन सैफ़

युँही बेसबब न फ़िरा करो

युँही बेसबब न फ़िरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो गज़ल की ऐसी किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

ये ॰खिजां की जर्द-सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो

कोई हाथ भी ना मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो

कभी हुस्न पर्द:नशीं भी हो जरा आशिकाना लिबास में
जो मैं बन संवर के कहीं चलूँ मेरे साथ तुम भी चला करो

नहीं बेहिज़ाब॰ वो चाँद-सा कि नज़र का कोई असर ना हो
उसे इतनी गर्मि-ए-शौक से बड़ी देर तक न तका करो

॰ खिजाँ= पतझड़
॰ बेहिज़ाब= बेपर्दा
॰ गर्मि-ए-शौक = उत्सुकता , लगन

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बशीर बद्र साहब ( १५-२-१९३५)

इल्ज़ाम जमाने के हम तो हँस के सहेंगे

इल्ज़ाम जमाने के हम तो हँस के सहेंगे
खामोश रहे हैं ये लब खामोश रहेंगे

तुमने शुरू किया तमाम तुम ही करोगे
हम दिल का मामला ना सरेआम करेंगे

हम बदमिज़ाज ही सही दिल के बुरे नहीं
दिल के बुरे हैं जो हमें बदनाम करेंगे

बदनाम करके हमको बड़ा काम करोगे
शायद जहां में ऊँचा अपना नाम करोगे

हर दाम पे ’ आकत!ब ' उन्हें तो नाम चाहिए
अच्छे से ना मिला तो बुरा काम करेंगे