इस से पहले कि तेरी चश्म-ए-करम माज़रत की निगाह बन जाये
प्यार ढल जाये मेरे अश्कों में आरज़ू एक आह बन जाये
मुझ पे आ जाये इश्क़ का इल्ज़ाम और तू बेगुनाह बन जाये
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा
इस से पहले कि सादगी तेरी लब-ए-ख़ामोश को गिला कह दे
तेरी मजबूरियाँ न देख सके और दिल तुझको बेवफ़ा कह दे
जाने मैं बेख़ुदी में क्या पूछूँ, जाने तू बेरुख़ी से क्या कह दे
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा
इस से पहले कि तेरे होठों से ग़ैर होठों के जाम टकराये
इस से पहले के ज़ुल्फ़ के बादल अजनबी बाज़ुयों पे लहराये
और तेरी बेबसी के नज़ारे मेरी आँखों पे आग बरसाये
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा
छोड़ कर साहिल-ए-हयात चला अब सफ़ीना मेरा कहीं ठहरे
ज़हर पीना मेरा मुक़द्दर है और तेरे होंठ दिल-नशीं ठहरे
किस तरह तेरे आस्ताँ पे रुकूँ जब न पाँव तले ज़मीं ठहरे
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा
मुझ को इतना ज़रूर कहना है वक़्त-ए-रुख़्सत सलाम से पहले
तोड़ लूँ रिश्ता-ए-नज़र मैं भी तू उतर आये बाम से पहले
ये मेरी जान मेरा वादा है कल किसी वक़्त शाम से पहले
मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा
शायर: सफ़ुद्दिन सैफ़
No comments:
Post a Comment