चंबा शहर से विशेष लगाव था बटालवी को

माए नी माए मैं इक शिकरा यार बनाया
औदे सिर ते कलगी ते औदे पैरी झांझर
ओ चौग चुंगेदा आया,
इक औदे रूप दी धुप तिखेरी
दूजा मैहका दा तिरहाया
तिजा औदा रंग गुलाबी
ओ किसे गोरी मां दा जाया।
चूरी कुटां तां औ खांदा नहीं
असां दिल दा मांस खवाया
इक उडारी ऐसी मारी
ओ मुड़ वतनी न आया
माए नी माए मैं इक शिकरा यार बनाया

एक पक्षी की सुंदरता और उससे बिछडऩे का गम इतने खूबसूरत शब्दों को सिर्फ शिव ही पिरो सकता था। शिव कुमार बटालवी एक ऐसा शायर एक ऐसा कवि जिसने दर्द को पूरी तरह जिया था, दर्द से महोब्बत थी शिव के गीतों में तभी तो एक जगह शिव लिखते हैं ‘मैं दर्द नूं काबा कैह बैठा रब ना रख बैठा पीड़ा दां की पूछदे ओ हाल फकीरा दा’।  सिर्फ दर्द ही नहीं इससे हटकर भी शिव के गीतों में झलक दिखाई देती है वो झलक है शरारत की उनका लिखा एक गीत है ‘इक मेरी अख काशमी दूजा रात दे नींदरे ने मारया शीशे नूं तिरेल पै गई बाल वोंदी ने ध्यान जो हटा लया’। ये गीत पूरी तरह शरारत से भरा है, एक औरत की भावनाएं उसकी चंचलता बयां करता है ये गीत।

शिव के गीतों में पहाड़ की महक भी थी खासकर चंबा शहर। इसका जिक्र उनके काव्य नाटक लूणा में मिलता है। इसी काव्य के लिए उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया था और वह सबसे छोटे उम्र के साहित्यकार हैं जिन्हें ये सम्मान मिला, उस समय उनकी उम्र मात्र 28 साल थी। लूणा शिव की अमर प्रस्तुति है। पुरुष होकर एक औरत के दर्द को समझा महसूस किया और उसे अपनी कलम से बयां किया। अपने से बाप से अधिक उम्र के आदमी से शादी के बाद क्या बीतती है इसका दर्द शिव ने महसूस किया लूणा की शादी उसकी उम्र से कई साल बढ़े राजा से हो जाती है तो वह उसके बेटे यानी अपने सौतेले बेटे से प्यार कर बैठती है। जो समाज उसे कलंकनी या बुरा मानता था शिव ने उसी को दोषी ठहराते हुए लूणा के दर्द को समझया उसकी भावनाओं को समझा कि वह बाप की उम्र से बड़े उम्र के आदमी से कैसे प्यार कर सकती थी उसका प्यार तो पूर्ण (राजा का बेटा) ही था। लूणा में ही चंबा का बहुत खूबसूत विवरण मिलता है। जो इस तरह है:

अधी राती देस चंबे दे चंबा खिडय़ा ओ
चंबा खिडय़ा मालणे औदी महली गई खुशबू
महली राणी जागदी औदे नैणी नींद न कोई
राजे तांई आखदी मैं चंबा लैणा सो
जो काले वण मौलया जिदे हौके जई खुशबू
धर्मी राजा आखदा बाहां विच पिरो
न रो जिंदे मेरिये लगल लैण दे लौ
चंबे खातर सोहणिये जसां काले कोह
राणी चंबे सहिकदी मरी बेचारी हो
जे कर राजा दबदा मैली जांदी हो
 जेकर राजा साणदा काली जांदी हो
अधी राती देस चंबे दे।

इसमें चंबे की रानी चंबा फूल के लिए जिद करती है वो राजा के सामने रोती है राजा कहता है कि सुबह का इंतजार कर और इंतजार में वह मर जाती है। वहीं शिव ने चंबा फूल का भी बड़ी खूबसूरती से जिक्र किया है। उनके कई गीतों में चंबा फूल का जिक्र मिलता है: जैसे भट्ठी वालिये चंबे दिये डालिये पीड़ा दा परागा भुन दे.., न अज खिडऩा चानण दा फुल न अज खिडऩा चंबा, नी जिंदे कल मैं नहीं रैहणा आदि गीतों में चंबा फूल का जिक्र मिलता है।

शिव की लूणा में इंद्रलोक की नायिका और नायक जोकि सूत्रधार हैं चंबा शहर का जिक्र करते हैं। इसमें एक बात और खास है कि जिस भाषा शैली का इस्तेमाल किया है वो पंजाबी और थोड़ा-थोड़ा पहाड़ी का मिश्रित रूप है या जो शब्द दोनों भाषाओं में बोले जाते हैं उनका बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया है जैसे अधी राती देस चंबे दे ऐसी भाषा कांगड़ा, चंबा में बोली जाती है खिडय़ा आदि शब्दों में पहाड़ों की महक बरकरार है, लूणा में चंबे के राजा वर्मन का भी जिक्र है। वहीं सूत्रधार और नायिका लूणा के शुरू में एक बहुत ही खूबसूत ढंग से चंबा का वर्णन करते हैं, इतना सुंदर चंबा का वर्णन कहीं नहीं मिलता। जो इस तरह है:

ऐह कौन सू देस सुहावणा ते कौन सुहे दरया
जो रात नएवी चन दी विच दूरो रहा भलक रहा
इस तरह जब नायिका सवाल करती है तो सूत्रधार कुछ ऐसे जवाब देता है
ऐ देस सू चंबा सोहणिये ए रावी सू दरया
जो है इरावती कहोंदी विच देवलोक दे जा
ऐह धी है पांगी ऋषि दी ऐदा चंद्रभाग भ्रा
चंबियाली रानी देवली ऐहनू महंगे मुल लया
ते ताहीं धी तो बदलके एदा पुत्र नाम पया
चंबियाली खातर जांवदा ऐनू चंबा देस कहया।   

नायिका पूछती है कि ये कौन सी जगह है जो इतनी सुंदर है और ये कौन सी नदी बह रही है। तो इसके जवाब में सूत्रधार कहता है ये चंबा देस है और ये जो नदी बह रही है ये रावी है जो देवलोक में जाकर इरावती कहलाती है ये ऋषि पांगी की बेटी है और चंद्रभाग इसका भाई है चंबियाली रानी ने इसे महंगे मूल्य पर यानी की जान देकर लिया है इसलिए इसका बेटा नाम पड़ा है इसे ही चंबा देश कहा गया है।

इस गीत में चंबा की प्राचीन कथा का जिक्र मिलता है जिसे शिव ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से इस्तेमाल किया है। इरावती रावी का पुरातन नाम है. पांगी एक ऋषि का नाम है बताया जाता है कि उनके मुंह से रावी नदी निकली थी उनके नाम पर पांगी घाटी भी है जो चंबा शहर के पीठ की तरफ खड़ी है।

चंबियाली रानी देवली चंबा की रानी है। कहा जाता है कि वह अपनी बलि देकर रावी को चंबा में लाई थी बताया जाता है कि चंबा में पहले पानी नहीं मिलता था।

इस पुरातन कथा का शिव ने बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया है। चंबा शहर शिव के गीतों में हमेशा गूंजता रहेगा।

तेरी मुनिया...

सीवन टूटी जब कपड़ों कि,
या उधरी जब तुरपाई
कभी तवे पर हाथ जला,
तब अम्मी तेरी याद आई |

छोटी-छोटी लोई से मैं,
सूरज चाँद बनाती थी

ली-कटी उस रोटी को तू,
बड़े चाव से खाती थी |

अम्मा तेरी मुनिया के भी,
पकने लगे रेशमी बाल
बड़े प्यार से तेल रमाकर
तुने कि थी साज-संभाल |

तुने तो माँ बीस बरस के
बाद मुझे भेजा ससुराल
नन्ही बच्ची देस पराया,
किसे सुनायुं दिल का हाल |

तेरी ममता कि गर्मी,
अब भी हर रात रुलाती है
बेटी कि जब हुक उठे तो
यद् तुम्हारी आती है |

जन्म मेरा फिर तेरी कोख से,
तुझसा ही जीवन पायुं.
बेटी ही हर बार मेरी,
फिर खुद को उसमे दुह्रायुं  ||

मेरी प्यारी माँ...

ये लो शीशा...


जब भी मैं रोया करता
माँ कहती
ये लो शीशा
देखो इसमें
कैसी लगती है
अपनी रोनी सूरत
अनदेखे ही शीशा
मैं सोच-सोचकर
अपनी रोनी सूरत
हँसने लगता ||

एक बार रोई थी माँ भी
नानी के मरने पर
फिर मरते दम  तक
 माँ को मैंने
खुलकर हँसते
कभी न देखा |

माँ के जीवन में शायद
शीशा देने वाला
अब कोई नहीं था||

सबके जीवन में ऐसे ही
खो जाता होगा
कोई शीशा देने वाला||


याद मुझे तू आती है माँ

 बारिश की रिमझिम बूंदों में, 
ख्वाब में और मेरी नींदों में,
 हर पल तू मुस्काती है माँ,
 याद मुझे तू आती है माँ। 
जब-जब धूप का पहरा छाया,
 तूने अपना आँचल फैलाया,
 भीड़ हो या हो तन्‍हायी, 
साथ है तेरा एहसास दिलाया।

 अपने ममता के आँचल में,
 हर मुझे सुलाती है माँ,
 याद मुझे तू आती है माँ। 

मेरे नन्हे कदमों की आहट,
 तेरे ममतामयी दिल की राहत,
 सब दिन बीते कई मौसम आये, 
कम न हुई कभी तेरी चाहत,
 तन्हायी में तेरी ये बातें, 
आकर मुझे रुलाती है माँ,
 याद मुझे तू आती है माँ। 

आज भी मेरे खेल खिलौने,
 माँ तेरी झलक दिखाते हैं,
 तेरे साथ में गुजरे पल मेरी माँ, 
अब भूले नहीं भुलाते हैं, 
अपनी बांहों के घेरे में,
 जैसे मुझे झुलाती है माँ,
 याद मुझे तू आती है माँ।

 छोङ गई अपने पीछे तू
, अपनी अनमिट सी परछाईं,
 समझ नहीं पाएगी दुनिया,
 इस रिष्ते की निष्छल गहराई
 मेरे मन की छोटी सी बगिया,
 खुशियों से महकाती है माँ, 
याद मुझे तू आती है माँ।

जिंदगी ऐ जिंदगी...

जिंदगी ऐ जिंदगी...

जीते रहने की सजा दे जिंदगी ऐ जिंदगी
अब तो मरने की दुआ दे जिंदगी ऐ जिंदगी,
मैं तो अब उकता गया हूँ
क्या यही है कायनात...
बस ये आइना हटा दे जिंदगी ऐ जिंदगी|

दूंदने निकला था तुज को और खुद को खो दिया,
तू ही अब मेरा पता दे जिंदगी ऐ जिंदगी,
या मुझे एहसास की इस कैद से कर दे रिहा
वर्ना दीवाना बनादे जिंदगी ऐ जिंदगी|


ऐ जिंदगी

आँखों से अब न अश्क बहाना ऐ जिंदगी
हालात ज़रा अपने सुनाना ऐ जिंदगी

चंचल है तू हसीन है रंगीन है बहुत
जीवन के सारे रंग दिखाना ऐ जिंदगी

चर्चा है तेरे हुस्न की सारे शहर में अब
आँचल में अब न खुद को छुपाना ऐ जिंदगी

जिनके दिलों में जल रही है नफरतों की आग
आईना ज़रा उनको बताना ऐ जिंदगी

जो खेलते है खून की होली तू उन पे अब
इंसानियत का रंग चढाना ऐ जिंदगी

ऐ जिंदगी गले लगा ले...

ऐ जिंदगी गले लगा ले 
हम ने भी तेरे हर एक ग़म को गले से लगाया हैं,
 हैं ना
 हम ने बहाने से छुपके ज़माने से
 पलकों को परदे में घर भर लिया
 तेरा सहारा मिल गया हैं जिंदगी
 छोटा सा साया था आँखों में आया था 
हम ने दो बूंदों से मन भर लिया
 हम को किनारा मिल गया हैं जिंदगी|

तुम से सब...


जब भी तुम बिस्तर से उठकर
महावर लगे पैरों से चलकर
मेहँदी लगे हाथों से दरवाजा खोलती हो,
मेरे शहर में
उषा मुस्कुराने लगती है...





जब भी तुम आँचल संवारती हो
और तुम्हारी चूरियाँ
खनक उठती हैं
मेरे शहर के मंदिर में कोई भक्त
मधुर घंटियाँ बजाता  है...

जब भी बादल छाने  लगते हैं
और मेरी याद सताने लगती है
तुम्हारी आँखे भीगने लगती हैं.
तब मेरे शहर कि
नदियों के पुलों पर
पानी छलकने लगता है...