Showing posts with label गज़ल. Show all posts
Showing posts with label गज़ल. Show all posts

काश कहा होता तुमने...


काश कहा होता तुमने, ख़ुशी चाहिए
हम दुनिया भर की दे देते.

कहा होता, ख्वाइश पूरी करने को
हम एक भी अरमान बाकी न रखते.

कहा होता, तारे तोड़ लाने को,
सारा आकाश ले आते.

कहा होता, फूल लाने को,
गुलशन ले आतें.

कहा होता, प्यार करने को,
आखिरी सांस तक करते.

कहा होता जान दे देने को,
हँसते हँसते दे देते.

पर तुम तो वो मांग बैठे
जो मेरे बस में नहीं,
तुमसे जुदा होकर जी पाना...

मत पूछ उसके प्यार करने का अंदाज़ ..

उसने दिन रात मुझको सताया इतना
कि नफरत भी हो गई और मोहब्बत भी हो गई.

उसने इस नजाकत से मेरे होठों को चूमा,
कि रोज़ा भी न टुटा और अफ्तारी भी हो गई.

उसने इस अहतराम से, मुझसे मोहब्बत की,
कि गुनाह भी न हुआ और इबाबत भी हो गई.

मत पूछ उसके प्यार करने का अंदाज़ कैसा था...

उसने इस शिद्दत से मुझे, सीने से लगाया,
कि मौत भी न हुई और जन्नत भी मिल गई.

बताया तब जाना मैंने

अब कैसे कहूं कि तुम मेरी नज़रों से गिर गए हो,
न तुम भाषा समझते हो,न भाव,और न व्यवहार;

अब कैसे कहूं कि तुम्हारी ज़िन्दगी मेरे से अलग है,
न तुम नज़रों से गिरना सीख सके और न बेरुखी;

अब कैसे कहूं कि मेरे सपने बदल गए हैं तुम्हारे से,
मेरी निगाहों में न जाने क्या देखते हो हरपल....;

अब कैसे कहूं कि मुझे कभी प्यार न था तुमसे,
दिल्लगी को दिल से लगा के बैठे हो नादान से;

अब कैसे कहूं कि तुम्हारे रोने को न सुन सका,
मैं शोर में रहा होउंगा दोस्तों के साथ कल रात;

अब कैसे कहूं कि आसमान अब बदल गया,
मुझे रंग कुछ और अच्छे लगने लगे हैं..;

बताया तब जाना मैंने


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले

मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले

हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले

हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले

खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले

कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले

------------------------------------------------
चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई

फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई

देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।