तेरी मुनिया...

सीवन टूटी जब कपड़ों कि,
या उधरी जब तुरपाई
कभी तवे पर हाथ जला,
तब अम्मी तेरी याद आई |

छोटी-छोटी लोई से मैं,
सूरज चाँद बनाती थी

ली-कटी उस रोटी को तू,
बड़े चाव से खाती थी |

अम्मा तेरी मुनिया के भी,
पकने लगे रेशमी बाल
बड़े प्यार से तेल रमाकर
तुने कि थी साज-संभाल |

तुने तो माँ बीस बरस के
बाद मुझे भेजा ससुराल
नन्ही बच्ची देस पराया,
किसे सुनायुं दिल का हाल |

तेरी ममता कि गर्मी,
अब भी हर रात रुलाती है
बेटी कि जब हुक उठे तो
यद् तुम्हारी आती है |

जन्म मेरा फिर तेरी कोख से,
तुझसा ही जीवन पायुं.
बेटी ही हर बार मेरी,
फिर खुद को उसमे दुह्रायुं  ||

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