Showing posts with label पिता. Show all posts
Showing posts with label पिता. Show all posts

तुम गीत हो घर के ..


ओ पिता,
तुम गीत हो घर के
और अनगिन काम दफ्तर के.

छांव मे हम रह सकें यूँ ही
धूप मे तुम रोज जलते हो
तुम हमें विश्वास देने को
दूर, कितनी दूर चलते हो

ओ पिता,
तुम दीप हो घर के
और सूरज चाँद अंबर के

तुम हमारे सब अभावों की
पूर्तियां करते रहे हंसकर
मुक्ति देते ही रहे हमको
स्वयं दुख के जाल मे फंसकर

ओ पिता,
तुम स्वर, नए स्वर के
नित नए संकल्प निर्झर के...