स्वेटर...



जाने कितनी सर्दियाँ समा गयी होंगी
उस स्वेटर में
बरसों पहले बनाया था
उसने कभी मेरे लिए
जाने कितनी बार
फंदों में ऊन के
उलझी होंगी उँगलियाँ
भूले बिसरे दिनों की
यादों को समेटे हुए
अतीत के पन्नो पर
वर्तमान ने कुछ लिखा
आज फिर शायद
चलचित्र की भांति
दृश्य मचलने लगें
वीरान पड़ी आँखों में
बस यही तो इक
रह गयी हैउसकी
निशानी पास मेरे
उम्र के तकाजे ने
उड़ा दिया है रंग मेरी तरह
उसका भी फिर भी रखा हे सम्भाल कर उसको
आने वाली सर्दियों के लिए|

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