किश्ती हूँ...


जिंदगी से स्वपन मेरा हारा तो नहीं
किश्ती हूँ किनारे को पुकारा तो नहीं|
धीरज को मन में बसाये रखा है,
आशाओं का दीपक जलाये रखा है|
आंसू कोई आँख को मेरी गंवारा तो नहीं|
किश्ती हूँ स्वपन...........................

कहने को लगा,सारा जग अपना
हुआ नही पूरा,कभी कोई सपना|
पार मुझे किसी ने,उतारा तो नहीं,
किश्ती हूँ स्वपन.....................

आशाओं ने चाहत से वादा किया था,
साथ-साथ रहने का इरादा किया था|
साथ मेरे,तिनके का सहारा तो नहीं.
किश्ती हूँ स्वपन........................

दिल पे किसी चाह का एहसान है,
खुश हूँ मुझे कोई नहीं अरमान है|
इसमें किसी भाग्य का इशारा तो नहीं,
किश्ती हु स्वपन......................

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