दो गुलाब की पंखुरियां...

दो गुलाब की पंखुरियां छू गयी जब से होंठ मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुवन लगता है
रोम रोम में खिले चमेली
सांस-सांस में महके बेला
पोर-पोर से झरे चंपा
अंग-अंग जुड़े पूजा का मेला
पग-पग में लहरें मान सरोवर
डगर-डगर छाया कदम्ब की,
तुमने क्या कर दिया उम्र का खंडहर,राज भवन लगता है
तुम्हे चूमने का गुनाह कर
ऐसा पुण्य कर गयी माटी
जनम जनम के लिए हरी
हो गयी प्राण की बंजर घाटी
पाप पुण्य की बात छेड़ो,स्वर्ग नरक की करो चर्चा
याद किसी की मन में हो तो पंजाब भी वृन्दावन लगता है
तुम्हे देख क्या लिया की कोई
सूरत दिखती नही पराई
तुमने क्या छु दिया,बन गई
मेरी जिंदगी मुझसे ही पराई
कोन करे अब मंदिर में पाठ,कोन फिराए हाथ में माला
जीना हमें भजन लगता है,मरना हमें हवन लगता है||

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