पड़े-पड़े...
नदी पड़े-
पड़े काई हो जाती हैमिटटी पड़े-
पड़े धुललोहा पड़े-
पड़े जंग हो जाता हैलकड़ी पड़े-
पड़े दीमकहवा पड़े-
पड़े उबासी हो जाती हैआग पड़े-
पड़े राखसपने पड़े-
पड़े शिकस्त हो जाते हैंइच्छाएं पड़े-
पड़े ऊबपड़े-
पड़े हर चीज़केवल कबाड़ होती है
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