तुने डाली हे करुना कि ऐसी नज़र ,
कि मेरा गीत निखारना लगा है|
भवन जीवन का बन गया था खंडर,
तेरे इशारा सा फिर संवारना लगा है|
सब दिशाओ मे मच रहा था बवंडर,
तेरे हुक से सब कुछ ठहरने लगा है|
मैं घिर गया था घोर तमस मे ,
तेरी वाणी सा पथ झिलमिलाने लगा है |
चल दिया था मैं भी बनने सिकंदर ,
भीतर धयान का दिया जलने लगा है|
मेरा दिल बन गया उदासी का समंदर,
तुने गुदगुदाया तो रोम-रोम महकने लगा है |
दुखो ने बनाया मौत का तलबगार इस कदर,
बने जो नीलकंठ तुम ,दिल फिर जीने को मचलने लगा है |
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