शहर में घर का सपना...

माथे के पसीने का
एडी तक पहुंच जाने पर भी 
पचास गज का एक अदद फ्लैट
सपना ही बना रहा |

शहर में गजों में नापी जाती है तुम्हारी औकात
गाँव का कत्त्ठा,बीघा,और एकड के मुकाबले 
पचास,सौ या दो सौ गज कि हैसियत
बहुत बड़ी है शहर में |

गावं में सिर्फ कब्र नापी जाती है गज में
और वह दो गज जमीन भी 
तुम्हारी वास्तविक हैसियत बताने के लिए
बड़ी पड़ जाती है |



हुस्ने अम्ल

ये बात ये तबस्सुम,ये नाज,ये निगाहें |
आखिर तुम्हीं बताओ,क्यूँ कर तुमको चाहें ||

अदा वो क्या कि चुराय न दिल को दम भर में |
वो हुस्न क्या जो मअन दिलनशीं न हो जाये ||

आफत तों है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन |
मरता हूँ मैं जिस पर,वो अदा और ही कुछ है ||

मैं देर तक तुझे खुद ही न रोकता लेकिन   |
तू जिस अदा से उठी है,उसी का रोना है ||

हमारी आँखों में आओ तों हम दिखाएँ तुम्हें |
अदा तुम्हारी जो तुम भी कहो कि हाँ कुछ है ||

है जवानी खुद जवानी का सिंगार |
सादगी गहना है इस उम्र के लिए ||

इस सादगी पे कौन न मर जाये ऐ खुदा |
लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं ||

ये नाज़,ये गरूर लड़कपन में तों न था |
क्या तुम जवान हो के बड़े आदमी हुए ||


गुजरा जमाना...

सावंली सुंदर सलोनी सी लड़की
नीम दरखत के पीछे कि खिडकी

आम कि साखें और बरगद कि डाली
नीम के पत्ते और मिटटी कि प्याली

देख के मुझ को उस का मुस्कुराना
दांतों से अपने होंठ दबाना

दुपट्टे के छोर में ऊँगली फिरानी
चुपके से मेरे ख्यालों में आना

भरी दुपहरी में छत पे बो आना
भिगो कर बालों को फिर से सुखाना

बाल बनाने को खिडकी पे आना
करूं जो इशारे तो मुंह का बनाना

चांदनी रात में बागों में जाना
 छीपछीप के उस का मिलने को आना

पूनम कि रात में तारों का गिनना
बंद कर के आँखे उस कि बातों को सुनना

बहुत याद आता है गुज़रा जमाना
उस कि गली के चक्कर लगाना|

वो अहसास मात्रत्व का...

गर्व होता है खुद पर,
दुनिया के लिए किस्से सही,
हमें होता है फख्र खुद पर,यह समझ सकती है 'सिर्फ एक माँ'

गुजरना वो नों महीनों का,
न जाने कितनी उलझनों को सहना,
वो पीड़ा , वो आनंद ,
यह समझ सकती है'सिर्फ एक माँ'

वो लम्हा थम जाता है जनम का,
हजारों खुशियाँ आ जाती हैं कदमों में,
कोई दर्द कोई आंसू याद नहीं रहता,
जब मिलता है'स्पर्श'शिशु का,
यह समझ सकती है 'सिर्फ एक माँ'

माँ जैसा रब नहीं...

ईश्वर हर जगह हो नहीं सकता था,इसलिए माँ भिजवाई,
न मैं गुनी  हूँ न मैं ज्ञानी,और न इतना जग जाना |
पर इस नन्हे फूल  ने खिलकर गोद में मेरी,भेद मुझे ये समझाया,
की लाख जतन चाहे कर ले वो इश्वर हो ही नही सकता माँ जैसा |

एक ठिठुरती सर्द रात में.क्या देखा है किसी ने,
उस ईश्वर को गीले बिस्तर पर सोते |
ये केवल माँ हो सकती है...

वो तो पूरी कायनात का जादू लेकर बैठा है,
कोई करिश्मा कर भी  दे,तो बात बड़ी इसमें क्या है |
पर मैंने महसूस किया है,माँ के छु लेने भर ही से,
कैसा जादू होता है,गहरे से गहरा  दुःख हो चाहे छू मंत्र हो जाता है |

हम बन्दों को पता है क्या की ईश्वर दुःख भी देता है?
कर्मों का करके हिसाब वो फिर पीछे ही कुछ देता है |
कहाँ वो इतने दरियादिल की,झूठ-मूठ के आंसू से पिघलकर,
जान-बूझकर सारा छल,फिर भी ठगाए बच्चों से |
यह केवल माँ हो सकती है बस  केवल माँ हो सकती है ...

कहकर माँ को रब जैसा ,क्यूँ उसके भोलेपन पर प्रश्न करूं?
क्या देखा है कहीं किसी ने उसमे माँ-सा भोलापन?
ये तो बस माँ हो सकती है,बस केवल माँ हो सकती है...
माँ की व्याख्या केवल माँ है,माँ का वर्णन केवल माँ |
केवल माँ ही माँ जैसी है|रब नहीं है उस जैसा |