दुनिया के लिए किस्से सही,
हमें होता है फख्र खुद पर,यह समझ सकती है 'सिर्फ एक माँ'
गुजरना वो नों महीनों का,
न जाने कितनी उलझनों को सहना,
वो पीड़ा , वो आनंद ,
यह समझ सकती है'सिर्फ एक माँ'
वो लम्हा थम जाता है जनम का,
हजारों खुशियाँ आ जाती हैं कदमों में,
कोई दर्द कोई आंसू याद नहीं रहता,
जब मिलता है'स्पर्श'शिशु का,
यह समझ सकती है 'सिर्फ एक माँ'
1 comment:
A very nice poem! :)
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