मौन विदाई...

बसंत को विदा दी,
तो मौसम का दर्द,
पतझड़ के पीले पत्तों पर,
कुछ यूँ छलक आया,
मानो उसकी विदाई ,
वह सह नही पाया|
मुरझाये चेहरे से,
सन्नाटे बुनता है,
हवा को गुनता है,
पीले से सरसर पत्ते,
जब दूर उड़ जाते हैं,
ठूंठ सा होकर,
इंतज़ार करता है,
नन्ही कोपल से,
पत्तों के स्पर्श की,
बहांर तो सच एक,
हवा का झोंका है,
क्रमबद्ध आती-जाती है|
मन दुखता है,
फिर हरा  हो,
लुभाता है हर्षाता है,
मन मोह ले जाता है|

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