किश्ती हूँ...
जिंदगी से स्वपन मेरा हारा तो नहीं
किश्ती हूँ किनारे को पुकारा तो नहीं|
धीरज को मन में बसाये रखा है,
आशाओं का दीपक जलाये रखा है|
आंसू कोई आँख को मेरी गंवारा तो नहीं|
किश्ती हूँ स्वपन...........................
कहने को लगा,सारा जग अपना
हुआ नही पूरा,कभी कोई सपना|
पार मुझे किसी ने,उतारा तो नहीं,
किश्ती हूँ स्वपन.....................
आशाओं ने चाहत से वादा किया था,
साथ-साथ रहने का इरादा किया था|
साथ मेरे,तिनके का सहारा तो नहीं.
किश्ती हूँ स्वपन........................
दिल पे किसी चाह का एहसान है,
खुश हूँ मुझे कोई नहीं अरमान है|
इसमें किसी भाग्य का इशारा तो नहीं,
किश्ती हु स्वपन......................
पूछ्तें हैं हाल कैसा है...
पूछते तो की हाल कैसा है|
उस पल थी क्यूँ तेरी सोच गुम,
अब तुझ को मलाल कैसा है|
उलझे से हैं हम जाने कहाँ,
ये रोज़-ए-विसाल कैसा है|
मेरे दिल में तो इश्क जिन्दा है,
तेरे दिल में ख्याल कैसा है|
कहते थे जाओ मेरी बला से तुम,
अब ये अश्क-ए-शलाल कैसा है|
आज वो शर्मिंदा है देखो तो,
उस खुदा का कमाल कैसा है|
क्या वो है यहीं कहीं,
जख्मों में ये उबाल कैसा है|
नया साल मुबारक जी...
दिल का ऐसा हाल|
जैसे बेटी जा रही ,
कल अपने ससुराल||
क्या होगा उस वकत जब,
जन्मेगा नव वर्ष|
नन्हे हाथों से मुझे,
कर लेगा स्पर्श ||
ओ प्यारे नव वर्ष जी,
इतना रखना ध्यान|
बारिश हो भरपूर और,
खेतों में धन धान ||
दुर्घटना आंतक से,
बचा रहे संसार|
मानव पर मानव करे,
कहीं न अत्याचार||
बाढ़ और भूकंप का,
हो न कहीं प्रकोप|
न शंका दुर्भिक्ष की ,
न ओलों का खोफ||
फिर बदलेंगे डायरी,
कैलेंडर पंचांग|
कसमों की नोटन्कियाँ,
संकल्पों के स्वांग||
सबको यह उम्मीद है,
सबके मन में हर्ष|
खुशियों की इक पोटली,
खोलेगा नव वर्ष||
सोच एक शायर की...
शाम का वक्त है शाखों को हिलाता क्यों है
तू थके-मांदे परिंदों को उडाता क्यों है
वक्त को कौन भला रोक सका है पगले
सुइयां घर्डियों की तू पीछे घुमाता क्यों है
स्वाद कैसा है पसीने का,यह मजदूर से पूछ
छाँव में बैठ के अंदाज लगाता क्यों है
मुझको सीने से लगाने में है तोहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढाता क्यों है
प्यार के रूप हैं सब,त्याग-तपस्या-पूजा
इनमें अंतर का कोई प्रशन उठाता क्यों है
मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख-दुःख से लगाता क्यों हैं
देखना चैन से सोना न कभी होगा नसीब
ख़्वाब की तू कोई तस्वीर बनाता क्यों है
आज की शाम यूँ ही निकल जाएगी...
आज की शाम तो किसी तरह गुजर जाएगी
रात गहरी है मगर चाँद चमकता है अभी|
मेरे माथे पे तेरा प्यार धमकता है अभी
मेरी साँसों में तेरा लम्स महकता है अभी|
मेरे सीने में तेरा नाम धडकता है अभी
बात करने को मेरे पास बहुत कुछ है अभी||
तेरी आवाज़ का जादू है,अभी मेरे लिए
तेरे होंठों की खुशबू है अभी मेरे लिए
तेरी बातें तेरा पहलू अभी है मेरे लिए
सब से बड़के मेरी जान तू है,अभी मेरे लिए
बात करने को मेरे पास बहुत कुछ है अभी तेरे लिए||
आज की शाम तो किसी तरह गुजर जाएगी
आज के बाद मगर,रंग-ए-वफा क्या होगा
देखना यह है की कल तुझसे मुलाकात के बाद
रंग उम्मीद खिलेगा या बिखर जायेगा
वकत परवाज करेगा या ठहर जायेगा
जीत हो जाएगी या खेल बिगड़ जायेगा
ख़्वाब का सहर रहेगा या उजड़ जायेगा||
I Love You...
तुमने मुझे पुकार क्या लिया आज
कानों में गूँज रही है तेरी ही आवाज़
तुमने आज जब बुला कर मुझे I love you कहा था
तब सच मानो मैं मरता मरता बचा था
क्यूंकि इतना आसान नही है I Love You कहना ,सुनना
इसके लिए तो कई प्रेमियों को पड़ा है मरना
मेरे से ज्यादा आज दुनिया में नही है कोई खुशनसीब
क्यूंकि मेरे साथ यह घटना थी बड़ी अजीब
कई जन्मों से शायद मुझे थी तेरी तलाश
ढूंढ़ता रहा 'परवाना जिसे दुनिया में
वह आज है मेरे पास ||
कपिल देव सग्गी
दो गुलाब की पंखुरियां...
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुवन लगता है
सांस-सांस में महके बेला
पोर-पोर से झरे चंपा
अंग-अंग जुड़े पूजा का मेला
पग-पग में लहरें मान सरोवर
डगर-डगर छाया कदम्ब की,
ऐसा पुण्य कर गयी माटी
जनम जनम के लिए हरी
हो गयी प्राण की बंजर घाटी
याद किसी की मन में हो तो पंजाब भी वृन्दावन लगता है
सूरत दिखती नही पराई
तुमने क्या छु दिया,बन गई
मेरी जिंदगी मुझसे ही पराई
जीना हमें भजन लगता है,मरना हमें हवन लगता है||
चेहरा...
लो फिर याद आ गया तुम्हारा सलोना चेहरा |
याद आते ही तुम्हारी,खिल उठा मन मेरा||
चाहता है दिल मेरा देखता रहूँ बस तुझे |
बस तुम यह अधिकार दे दो मुझे||
तुम्हारी एक झलक से दिल प्रसन्नता से भर जाता |
तुम्हे देखते रहने से भला बताओ तुम्हारा क्या जाता ||
गर एक नज़र तुम भी देख लो इधर मुझे|
तो मैं समझूंगा जन्नत ही मिल गयी मुझे||
हर एक आहट तुम्हारे आने का देती है आभास|
पर जब दिखते नही तुम तो दिल हो जाता है उदास ||
हो कितना अच्छा गर तुम रोज़ दीदार करा दो अपना |
तुम्हारे लिए ही तो गंवाता है परवाना 'समय अपना||
जिस दिन नही दिखता तुम्हारा मधुवन सा चेहरा|
उस दिन मुझे दिन में भी दिखता है अँधेरा||
इस लिए आना कल जरुर अगर सच्चा है प्यार मेरा||
स्वेटर...
जाने कितनी सर्दियाँ समा गयी होंगी
उस स्वेटर में
बरसों पहले बनाया था
उसने कभी मेरे लिए
जाने कितनी बार
फंदों में ऊन के
उलझी होंगी उँगलियाँ
भूले बिसरे दिनों की
यादों को समेटे हुए
अतीत के पन्नो पर
वर्तमान ने कुछ लिखा
आज फिर शायद
चलचित्र की भांति
दृश्य मचलने लगें
वीरान पड़ी आँखों में
बस यही तो इक
रह गयी हैउसकी
निशानी पास मेरे
उम्र के तकाजे ने
उड़ा दिया है रंग मेरी तरह
उसका भी फिर भी रखा हे सम्भाल कर उसको
आने वाली सर्दियों के लिए|
यहाँ मुस्कान को पलने दें...
और मरहम भी कैसा होगा||
अगर बच्चे आलोचना के साथ पलें,
तो नकारना सीख जायेंगे
अगर आक्रमकता के साथ पलें तो लड़ना सीख जायेंगे
अगर उपहास उनके बचपन का साथी बना तो शर्मिंदा रहेंगे
अगर अपमान उनको मिलता रहा
तो अपराधबोध पालना सीख जायेंगे
उन्हें सब्र दिया,तो सहनशीलता के अंकुर वृक्ष बन जायेंगे
अगर उनका उत्साह बदाया,तो आत्मविश्वास के सोते बनेगें
तारीफ मिली,तो सदा सकारात्मकता सीखेंगे
ईमान सीखाया,तो न्याय को पहचानेगें
उन्हें सुरक्षा दी,तो विशवास करना सीखेंगे
उन्हें सहमती मिली,तो खुद को और दुनिया को
प्यार से स्वीकारना सीखेंगे
भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलोमुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलोगंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलोख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो.ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में..
न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बी क़तारों मेंअदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँद-तारों मेंरहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों मेंकहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्तहारों में.कुछ और बात होती...
दोस्तों! तुम प्रदर्शन करने आये,
सोचो क्या तुमने हासिल किया|
अगर तुम दर्शन करने आये होते,
तो शायद कुछ और बात होती||
भाव-भंगिमा से लगता है द्वेषपूर्ण रोष,
व्यापत था तुम्हारे शरीर में,
थोडा सा प्रेम लेकर आये होते,
तो शायद कुछ और बात होती||
समाज के प्रति फर्ज नही देता,
किसी को अभद्रता का अधिकार|
साधू-संतों से शालीनता बरतते,
तो शायद कुछ और बात होती||
विघटनकारी शक्तियों के इशारों पर,
कठपुतलियों की तरह नाचते हो|
अपने विवेक को प्रखर कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती||
कसूर तुम्हारा भी नहीं है शायद,
तुम्हारा धंधा है सनसनी फैलाना|
तथ्यों को जानने की जहमत करते,
तो शायद कुछ और बात होती||
नारायण को साधारण नर जाना,
मुजरिम समझकर किया अपमाना |
लोक-कल्याण में सहयोग कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती
ब्रह्मज्ञानी की अवमानना के बदले.
जाने प्रकृति कैसा कोप ढाये|
पड़ जाते सत्संग के चार छींटे,
तो शायद कुछ और बात होती||
कोमलचित संत तुम्हारी उदंडता को भी
अपने चित पर नहीं धरते|
तुम उनसे स्वयं श्रमा -प्रार्थना कर पाते ,
तो शायद कुछ और बात होती||
जानता हूँ तुम अपने वाक् -चातुर्य से,
हर बात काटने को ही आतुर|
बातें तुम्हारे हित की हैं यह बात जान पाते,
तो कुछ और बात होती ||
कितने दिन???
विस्तार रहेगा कितने दिन |
सत्कार रहेगा कितने दिन,
यह प्यार रहेगा कितने दिन |
चाहे पितु हो या माता हो,
पत्नी हो सुत या भ्राता हो|
जिसको अपना कहते उस पर,
अधिकार रहेगा कितने दिन|
कोई आता कोई जाता,
सबसे थोड़े दिन का नाता|
जिसका भी आश्रय लेते वह ,
अधिकार रहेगा कितने दिन|
जो जग में सच्चे ज्ञानी हैं,
परमार्थ तत्व के ध्यानी हैं|
उनसे पूछो मन का माना,
यह संसार रहेगा कितने दिन|
तुम प्रेम करो अविनाशी से,
मिल जाओ सब उर वासी से|
ऐ पथिक! यहाँ मैं-मेरा का,
व्यापार रहेगा कितने दिन||
तो तुम्हें मानूँगा ...
दर्द दिल मेरा मिटा दो तो तुम्हें मानूँगा |
मरने वाले को जिन्दा कर दो तो मैं तुम्हे मानूँगा ||
फोड़ डाला है जमाने नें मुकदर मेरा |
बिगड़ी तक़दीर बना दो तो तुम्हे मानूँगा ||
प्यासी आँखों को मेरी,शर्बते दीदार मिले |
इस तरह प्यास भुझा दो तो तुम्हें मानूँगा ||
रूस,इंग्लॅण्ड और जापान जगा सकते हो |
सोये भारत को जगा दो तो तुम्हें मानूँगा ||
मैं हूँ परवाना उसके दिल में गर |
प्यार की शम्मा जला दो तो तुम्हें मानूँगा ||
ईशवर की भूलें...
गलती तो सबसे होती है,
इश्वर ने क्या भूल नहीं की?
हाथी की जो असल पूँछ थी,
वह उसके मुँह पर लटका दी
नाम रख दिया 'सूंड'
अपनी भूल छिपाने को फिर-
एक गधे की पूँछ तोड़कर
हाथी के पीछे चिपका दी|
और हमारे कान?दो इंच के-
किन्तु वह चूहे सा
तीन इंच की 'बॉडी' उसकी,
छह इंच के कान ?
वाह भगवान् !
यही है न्याय ?
हाय !!
और बताऊं एक तीसरी भूल ?
भयंकर भूल !
मुख मंडल पर-
दो आँखें पास-पास ही फिट कर दी है?
एक नेत्र आगे लग जाता
और एक पीछे लग जाता
तो क्या कुछ घाटा पड जाता ?
आगे को तुम देख रहे हो-
पीछे कोई चपत मारकर
भाग जाए तो क्या कर लोगे?
और देखिये एक गजब बात-
मूछ और दाढ़ी दोनों ही पुरुष वर्ग को दे डाली है|
अरे!मूंछ अगर मर्दों को दे दी,
तो दाढ़ी देवीजी को देते|
पर हमको क्या मतलब
इस से होने दो अन्याय !
दो बजकर पच्चीस हो गयी,
चलो पियेंगे चाय |
कपिल देव सग्गी
क्या फिर उदित होगा सूरज?
आज भी आकाश घना हो रहा है
कहीं सलीब पर
आज भी हमें प्यार करने वाला
छटपटा रहा होगा|
आज भी किसी रहिस के भोज में
कोई गरीब के मेमने को छीनकर
मार रहा होगा,आज भी कहीं
सपनो के खून से कोई
आँगन को लीप रहा होगा
आज भी आकाश घना हो रहा है
कहीं एक बेचारी बहन का मांस
कुत्ते चबा रहे होंगे
आज भी पडोसी द्वारा खुद की जमीन में|
तैयार किये गये अंगूर के बाग़ को
कोई तबाह कर रहा होगा
आज भी हज़ारों
नन्हें गालों पर खिलनेवाले
केसर के फूलों को कोई
हड़प रहा होगा
आज भी थोड़े मृत सपनो के लिए
किसी के सीने में चिता जल रही होगी
आज भी ख़ुशी से
उड़ रहे नन्हे कपोत को
बाण से गिराया गया होगा
आज भी अधनंगे
बूढ़े पिता को नमस्कार कर
कोई गोली चला रहा होगा
आज भी आकाश घना होने पर
मेरा मन अंधकार से भर जाताहै
क्या आज सूरज अस्त होने के बाद
फिर उदित नही होगा?
बच्चों से बातें करना
बच्चों से बातें करना
वेद पुराण उपनिषद का पढ़ना.
दिल की कहना दिल की सुनना
उन्मुक्त निडर नदिया सा बहना.
दुनिया को पैरों में रखना
पैरों को सर पर रख लेना,
सर को फिर ज़मीन पर रख कर
एक कलाबाज़ी खा जाना.
गोल गोल दुनिया के चक्कर
अपनी दुनिया अलग बसाना
बच्चों ने बचपन से जाना.
ज़रा ग़ौर से देखें हम जो
बच्चों की नन्हीं दुनिया को
सहज भाव से भरी हुई है.
प्रेम सहज है, क्रोध सहज है
जीवन का हर छन्द सहज है
प्रीत का एक धागा ऐसा है
रोते रोते वो हँस पड़ता.
बच्चों के भावों में खोजें
एक अलौकिक ज्ञान मिलेगा
कर्ता-कर्म का द्वंद्व न होगा
पल पल का विस्तार मिलेगा.
हम सब भी तो बच्चे ही थे
इसी भाव में रचे बसे थे
फिर हमको क्या हो जाता है
वो बच्चा क्यों खो जाता है.
तत्व प्रश्न जीवन का यह है
इसका उत्तर कठिन है मिलना
बच्चों से बातें करना
वेद पुराण उपनिषद का पढ़ना.